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मासिक पुरालेख: दिसम्बर 2013

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भौतिकी का नोबेल : ईश्वरीय कण के नाम


भौतिकी का 2013 का नोबेल पुरुस्कार संयुक्त रूप से दो वैज्ञानिकों (फ्रेंकोइस इंग्लर्ट और पीटर डब्लू हिग्स) को दिया गया है। नोबेल समिति द्वारा सिर्फ सैद्धांतिक विज्ञान पर किये गए कार्यों को नोबेल पुरुस्कार नहीं दिए जाते। फ्रेंकोइस इंग्लर्ट व स्वर्गीय रोबर्ट ब्राउट की जोड़ी तथा पीटर डब्लू हिग्स ने 1964 में स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए सैद्धांतिक रूप से प्रतिपादित किया था कि उत्पन्न होने वाले कोई कण हिग्स बोसोन कणों द्वारा कैसे द्रव्यमान ग्रहण करते हैं ? सर्न के लार्ज हैड्रान कोलाइडर पर एटलस संसूचक और सीएमएस संसूचक प्रयोगों के आधार पर 4 जुलाई 2012 को इस बात की पुष्टि की गई कि परमाणु के मानक मॉडल में हिग्स बोसोन कणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। और मौलिक कणों की खोज के माध्यम से सर्न ने यह भविष्यवाणी भी की। कि सम्भवतः हिग्स बोसोन कण खोज लिए गए हैं। और उपपरमाणु जैसे मूलकणों को द्रव्यमान देने का श्रेय हिग्स बोसोन कणों को जाता है। तब से इस खोज पर किये गए कार्यों को नोबेल से नवाजे जाने की अटकलें समाप्त हो गईं। इंतज़ाऱ था तो पुरुस्कार की औपचारिक घोषणा का और अंततः 2013 का नोबेल पुरुस्कार संयुक्त रूप से फ्रेंकोइस इंग्लर्ट और पीटर डब्लू हिग्स को “उप-परमाणु कणों के द्रव्यमान की उत्पत्ति” के बारे में हमारी समझ विकसित करने में योगदान देने के लिए दिया गया है। जबकि नोबेल पुरुस्कार मरोपरान्त नहीं दिया जाता है इसलिए स्वर्गीय रोबर्ट ब्राउट को इस पुरुस्कार से नहीं नवाजा गया।

52यह सच है कि हिग्स-बोसोन कण को ईश्वरीय कण के नाम से पुकारा जाता रहा है। परन्तु यह कण न तो ईश्वर है और न ही उस ईश्वर का अंश है। जब तक विज्ञान ईश्वर को खोज नहीं लेता। तब तक हिग्स-बोसोन कण को ईश्वरीय कण कहना अनुचित होगा। एक समय था जब स्वयं पीटर डब्लू हिग्स को हिग्स-बोसोन कण की खोज को लेकर संशय था। उस समय यह कण एक अवधारणा बनकर सामने आया था। जिसका अस्तित्व सैद्धांतिक रूप से परमाणु के मानक प्रतिमान (मॉडल) को समझने के लिए आवश्यक था। हिग्स-बोसोन कण की खोज हमारी समझ को इस तरह विकसित करने में सहयोग देती है कि कैसे गिने-चुने कुछ निर्मात्री पदार्थ कणों से यह ब्रह्माण्ड बना हुआ है ! ये पदार्थ कण कुछ बल कणों के माध्यम से उत्पन्न बलों द्वारा नियंत्रित होते हैं। इसलिए सृष्टि में सब कुछ वैसे ही घटित होता है। जैसा उसे होना चाहिए। हिग्स-बोसोन कणों का सीधा सम्बन्ध अदृश्य पदार्थों से है। हम जो कुछ देखते हैं वह सब दृश्य पदार्थ है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का केवल 5 % भाग (लगभग) दृश्य पदार्थ, 27 % भाग अदृश्य पदार्थ और लगभग 68 % भाग अदृश्य ऊर्जा से निर्मित है। कुल पदार्थ का लगभग 15 % भाग दृश्य पदार्थ है। गुरुत्वाकर्षण द्वारा मंदाकिनियों में होने वाले खिचाव को अदृश्य पदार्थ के रूप में देखा और मापा जाता है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि हिग्स-बोसोन कण अदृश्य पदार्थ से दृश्य पदार्थ का सम्बन्ध स्थापित करने में सहयोग करते हैं। इसलिए हिग्स-बोसोन कण हमारे लिए कुछ ज्यादा ही विशेष है।

पदार्थों के कणों की तरह बलों के भी कण होते हैं। वर्तमान में हम चार प्राकृतिक बल गुरुत्वाकर्षण, विद्युत-चुंबकीय, नाभिकीय क्षीण और नाभिकीय तीव्र बल से परिचित हैं। इन चारों बलों के अलग-अलग बलवाहक कण होते हैं। गुरुत्वाकर्षण और विद्युत-चुंबकीय बल वस्तुओं को आकर्षित या प्रतिकर्षित करते हैं। जबकि नाभिकीय क्षीण और नाभिकीय तीव्र बल परमाणु में संतुलन बनाए रखते हैं। फलस्वरूप हम गुरुत्वाकर्षण और विद्युत-चुंबकीय बल द्वारा सम्बंधित घटनाओं को देख सकते हैं। और परमाणु की आंतरिक घटनाओं को नहीं देख सकते। नाभिकीय तीव्र बल परमाणु के नाभिक में कार्यरत होता है। यह क्वार्क (उपपरमाणु कण) पर आरोपित रहकर न्यूट्रॉन और प्रोट्रॉन को केन्द्र में बांधे रखता है। इसी प्रकार नाभिकीय क्षीण बल परमाणु में इलेक्ट्रानों को बांधे रखता है। चूँकि परमाणुवीय धरातल पर गुरुत्वाकर्षण बल कार्य नहीं करता है। इसलिए कणीय भौतिकी में सिर्फ तीनों बलों (विद्युत-चुंबकीय, नाभिकीय क्षीण और नाभिकीय तीव्र बल) का अध्ययन किया जाता है। बलों से सम्बंधित एक प्रश्न हमेशा से वैज्ञानिकों को उलझाए रखता था कि चुम्बक को पास में रखे लोहे का पता कैसे चल जाता है ? या चंद्रमा को परिक्रमण गति करती हुई पृथ्वी के पाथ की जानकारी कैसे लगती है ? उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर देने हेतु भौतिकी कहती है कि यह स्पेस कई प्रकार के अदृश्य बल क्षेत्रों से भरा पड़ा है। जैसे कि गुरुत्वाकर्षण बल क्षेत्र, विद्युत-चुंबकीय बल क्षेत्र और क्वार्क बल क्षेत्र आदि..

physics3क्षेत्र दो प्रकार के होते हैं – पहला पदार्थ क्षेत्र (जो द्रव्य रूप में स्थान घेरता है) और दूसरा बल क्षेत्र (जिसमें क्वांटा स्वतंत्र रूप से कम्पन्न करते हैं)। बल क्षेत्र, बल कणों के माध्यम से कार्य करता है। हिग्स-बोसोन कण भी बल वाहक कण है। जो हिग्स-क्षेत्र के कम्पन्न हैं। हिग्स क्षेत्र वह अदृश्य बल का क्षेत्र है जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैला हुआ है। इस क्षेत्र के आभाव में क्वार्क और इलेक्ट्रान कण भी फ़ोटोन (प्रकाश कण) की तरह द्रव्यमान रहित होते। और खुले अंतरिक्ष में प्रकाश की गति से गतिशील होते। इस प्रकार क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत अनन्ता का प्रभाव लाता। और जिसमें सममितता का आभाव होता। जो ज्ञात तथ्यों के विपरीत की परिस्थिति होती। इंग्लर्ट और हिग्स ने सर्वप्रथम हिग्स क्षेत्र के बारे में यह बतलाया कि यह क्षेत्र पूर्व में ज्ञात परमाणु के मानक नमूने के प्रति हमारी सोच में बदलाव किये बिना सममितता की चर्चा का अंत करता है। यानि कि परमाणु में हिग्स क्षेत्र के प्रभाव से सममितता के होने या न होने का कोई अर्थ नहीं बचता। हिग्स (बल) क्षेत्र अन्य क्षेत्रों से अलग प्रकार का है। इस क्षेत्र में ऊर्जा की कमी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जबकि अन्य क्षेत्रों में ऊर्जा की कमी से क्षेत्र की तीव्रता शून्य भी हो सकती है। किसी कण का द्रव्यमान (संहति) हिग्स क्षेत्र से अन्तः क्रिया के समानुपाती होता है। इसलिए इलेक्ट्रान कण (9.10938291(40)×10-31 कि.ग्रा.) सर्वाधिक द्रव्यमान ग्रहण कर परमाणु और अणुओं के निर्माण में सर्वाधिक भूमिका निभाते हैं। आइंस्टीन के विशेष सापेक्षता के दिक्-काल तथा पदार्थ और ऊर्जा संरक्षण के नियम के लिए सममितता के अस्तित्व का होना जरुरी है। इसलिए नोबेल पुरुस्कृत कार्यविधि सममितता के अस्तित्व को इस प्रकार स्वीकारती है कि वह कभी प्रगट न हो ! सृष्टि की उत्पत्ति के वक्त सृष्टि सममित थी। महाविस्फोट के समय सभी कण द्रव्यमान रहित और सभी बल केंद्रित थे। यह मूल स्थिति कुछ समय तक रह सकी। कुछ कारण वश महाविस्फोट के 10-11 सेकंड बाद सममितता ओझल हो गई। हिग्स क्षेत्र ने अपने स्वाभाविक संतुलन को खो दिया। और यह आज भी शोध का विषय है कि यह कैसे हुआ ? सममितता तो आज भी कायम है मगर वह केंद्र पर नहीं ठहरती। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हिग्स क्षेत्र ने अपनी सममितता को तोड़कर शून्य में किसी स्थिर ऊर्जा स्तर को पा लिया था।

1954 में यूरोपीय परमाणु अनुसंधान परिषद (सर्न) द्वारा लार्ज हेड्रोन कोलाइडर के रूप में विश्व की विशालतम मशीन की स्थापना की गई। यह मशीन दो संसूचकों (एटलस और सीएमएस) से निर्मित है। जिसके अवलोकन के लिए लगभग 3000 वैज्ञानिक कार्यरत हैं। इस 27 कि. मी. माप के वृत्ताकार त्वरित्र में परमाणुवीय कणों (प्रोटोनों की धाराएँ) को प्रत्येक 10 घंटे के अंतराल में दोनों सिरों से विपरीत दिशाओं में दौड़ाकर टकराने के लिए प्रेरित किया जाता है। समान मात्रा और समान आवेश (धनात्मक) के प्रोटानों को अपने मन माफिक उपयोग में लाना मुश्किल होता है। इस प्रयोग का उद्देश मात्र टक्कर से निर्मित टुकङों का अध्ययन करना नहीं है। इस विवित्र टक्कर में नए प्रकार के कण भी उत्पन्न होते हैं। क्योंकि ऊर्जा का एक हिस्सा द्रव्यमान में परिवर्तित होता है। जब उच्च ऊर्जा के ग्लूकोन आपस में टकराते हैं तो एक हिग्स बोसोन कण उत्पन्न होता है। 125 गीगा वोल्ट पर एक हिग्स कण बनता है। हिग्स बोसोन कण प्रोटॉन की तुलना में 100 गुना अधिक द्रव्यमान रखता है। इसी कारण हिग्स बोसोन कण को उत्पन्न करना कठिन कार्य है।

लार्ज हैड्रान कोलाइडर (महाप्रयोग) के उद्देश :

  1. 8 टेराइलेक्ट्रोवोल्ट पैमाने की सीमा तक भौतिकी खोजना।
  2. हिग्स बोसॉन कण का अध्ययन करना।
  3. परमाणु के मानक प्रतिमान (मॉडल) में अतिसममिति और अधिविमा से सम्बन्धित भौतिकी को खोजना।
  4. भारी आयन के संघट्ट से सम्बंधित सभी पहलुओं का अध्ययन करना।
फ़ोटो में : एटलस संसूचक में चार म्युऑंस (लाल) चिन्हों द्वारा यह सम्भावना जताई गई है कि यह रचित अल्पकालिक हिग्स-बोसोन कण का क्षय है।
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फ़ोटो में : सीएमएस संसूचक में दो हरे चिन्हों द्वारा यह सम्भावना जताई गई है कि हिग्स-बोसोन कण की रचना और उसका क्षय दो फोटॉनों के रूप में होता है।

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भले ही हिग्स-बोसोन कण ब्रह्माण्ड की पहेली का अंतिम उत्तर न हो। परन्तु उसकी खोज ने परमाणु के मानक नमूने की पहेली को सुलझा दिया है। आइंस्टीन के द्रव्य-ऊर्जा तुल्यता के समीकरण के अनुरूप हमने व्यापक स्तर पर पदार्थ को ऊर्जा में तथा ऊर्जा को पदार्थ में परिवर्तित होते देखा है। परन्तु इस बार वैज्ञानिकों का प्रयास “निम्न स्तर की ऊर्जा का पदार्थ में परिवर्तित” होने की घटना का अवलोकन करना है। जिससे कि समय, अंतराल, पदार्थ और ऊर्जा की छोटी से छोटी इकाई को और अधिक स्पष्टता के साथ समझा जा सके। इसी तरह कार्य करते हुए सम्भव है कि किसी दिन वैज्ञानिक लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर में कणों का पीछा करते करते ऐसा कण बना बैठेंगे जो अदृश्य पदार्थ का हिस्सा होगा !

चिकित्सा में नोबेल : कोशिकाओं की भाषा के नाम


चिकित्सा में २०१३ का नोबेल पुरुस्कार संयुक्त रूप से तीन वैज्ञानिकों (डॉ. रैंडी डब्लू. शेकमान, डॉ. जेम्स ए. रोथमन, डॉ. थॉमस सी. सूडाफ) को दिया गया है। आपने पुटिका (फफोला) के आवागमन की मशीनरी विनियमन को, जो कोशिकाओं की प्रमुख परिवहन प्रणाली है को खोज निकाला है। आप तीनों साथ-साथ न होकर भी कोशिकाओं की प्रमुख परिवहन प्रणाली को एक रूप में देखते है। तात्पर्य स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए आप तीनों वैज्ञानिकों ने विज्ञान की अलग-अलग विधियों का प्रयोग करके कोशिकाओं की परिवहन प्रणाली के भिन्न-भिन्न चरणों को एक घटना के रूप में पाया है। आप तीनों की संयुक्त खोज यह दर्शाती है कि प्रकृति इतने सूक्ष्म स्तर पर इतनी दक्षता के साथ परिवहन का कार्य कैसे करती है ?

Medicine Main

मानव जाति हज़ारों सालों से परिवहन का कार्य करती आ रही है। परिवहन के कार्य के लिए आवश्यक है कि निर्धारित लक्ष्य, समय, गंतव्य और निश्चित पाथ का ज्ञात होना। सटीक शब्दों में कहूं तो परिवहन के लिए आवश्यक है एक व्यवस्था का लागू होना। और व्यवस्था को सुचारु रूप से चलायमान रखने के लिए आवश्यक है नियमों का होना। चाहे वे नियम संचार की किसी भी भाषा शैली का उपयोग करते हों। वह भाषा शैली मौखिक, लिखित, सांकेतिक या निर्देशित हो सकती है। वर्तमान  में संचार और परिवहन के साधनों में विकास हुआ है। इस विकास के कारण आज हम पृथ्वी के अलावा अंतरिक्ष स्टेशनों से जुड़े हुए हैं।
आप तीनों नोबेल पुरुस्कार विजेताओं ने कोशिका के भीतर उपस्थित एक कोशिकांग से दूसरे कोशिकांग तथा कोशिका के बाहर से कोशिका के अंदर होने वाले पदार्थ-परिवहन की भाषा से हमें परिचित करवाया है। यह एक बेहतरीन भाषा प्रणाली है जो कोशिकाओं तथा कोशिकांग के बीच बोली और समझी जाती है। यह भाषा कोशिका के केन्द्रीयकरण पर आधारित होती है। यदि किसी कोशिका का पूर्व में केन्द्रीयकरण नहीं हुआ है यानि कि उस कोशिका में पदार्थ-परिवहन कोशिका के अंदर एक कोशिकांग से दूसरे कोशिकांग के मध्य हो रहा है। जिसे सुकेन्द्रकीय कोशिका कहा जाता है। और यदि कोशिका में पदार्थ-परिवहन एक कोशिका से दूसरी कोशिका की ओर हो रहा है यानि कि उस कोशिका का केन्द्रीयकरण पूर्व में ही हो गया है। जिसे पूर्व केन्द्रकीय कोशिका कहा जाता है। जिसकी रचना प्रकृति ने स्वतः करोड़ों वर्ष पूर्व ही कर दी थी। सुनियोजित या नियंत्रित होने की वजह से पूर्व केन्द्रकीय कोशिका की रचना सरल मालूम पड़ती है। इसके विपरीत सुकेन्द्रकीय कोशिका अत्यंत जटिल मालूम होती है। सुकेन्द्रकीय कोशिका को किसी देश की बंद अर्थव्यवस्था और पूर्व केन्द्रकीय कोशिका को किसी देश की खुली अर्थव्यवस्था के रूप में समझा जा सकता है और इस प्रकार पदार्थ-परिवहन की यह प्रणाली निर्देशित भाषा शैली का उपयोग करती है।
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विज्ञान के विकास के साथ ही हमने यह जान लिया था कि कोशिका के अंदर एक कोशिकांग से दूसरे कोशिकांग में तथा एक कोशिका से दूसरे कोशिका में पदार्थों का परिवहन बुलबुले जैसी संरचना के द्वारा होता है। यह बुलबुली संरचना वसीय पदार्थों की भित्ति से ढ़की होती है। प्रत्येक बुलबुली संरचना लगभग ५० नैनोमीटर व्यास की होती है। और यह संरचना मुकुलन की क्रिया से निर्मित होती है। परन्तु इस बुलबुली संरचना वाले पदार्थ का परिवहन सही गंतव्य की ओर सही समय के साथ कैसे होता है ? यह जानना अभी तक शेष था। आप तीनों वैज्ञानिकों के सहयोग से हमने यह जाना है। कि..
  1. डॉ. रैंडी डब्लू. शेकमान ने यीस्ट कोशिकाओं के उन जीनों को खोज निकाला जो कोशिकीय परिवहन का आनुवंशिक आधार तैयार करते हैं। जो जीवन के लिए अति आवश्यक है।
  2. डॉ. जेम्स ए. रोथमन ने जैवरसायनिक विधियों के प्रयोग से उन प्रोटीनों को खोज निकाला है। जो बुलबुली संरचना को किसी कोशिका से जुड़ने की क्रिया में मदद करते हैं। इन्ही प्रोटीनों की सहायता से बुलबुली संरचना का सही भाग कोशिका के सही हिस्से से जुड़ता है।
  3. डॉ. थॉमस सी. सूडाफ ने तंत्रिका विशेषज्ञ होने के नाते कोशिकाओं की निर्देशित शैली की भाषा को समझा। और बतलाया कि कैल्शियम आयन के रूप में संकेत (स्पर्श द्वारा) प्राप्त होने के बाद ही तंत्रिका कोशिका, तंत्रिसंचारियों का प्रवाह प्रारम्भ करती हैं। आपने इस प्रणाली की आण्विक मशीनरी को भी खोज निकाला है जो कैल्शियम आयन के संकेत के रूप में कार्य करती है।
डॉ. रैंडी डब्लू. शेकमान ने साथ ही साथ यह भी बतलाया कि जिन कोशिकाओं में पदार्थ-परिवहन की मशीनरी ठीक तरीके से कार्य नहीं करती है। जिसके कारण पदार्थ परिवहन रुक सा जाता है जिसे अनुवांशिक गुणों का कारण माना गया। और अंततः रैंडी ने उत्परिवर्तित जीन की खोज कर ही ली। रैंडी ने जो जीन यीस्ट में खोजे हैं। रोथमन ने वैसे ही जीन मानव कोशिका में भी पाए हैं। इससे यह पता चलता है कि एक बार विकसित हुई कोशिकीय परिवहन व्यवस्था विकास क्रम के साथ-साथ आगे बढ़ती रही है। नोबेल पुरुस्कार की घोषणा के बाद नए शोधों से वैज्ञानिक यह जानकर हैरान हैं कि डीएनए के जीनोम आनुवांशिक कोड लिखने के लिए दो अलग-अलग तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं। एक से पता चलता है कि प्रोटीन कैसे बना है और दूसरी भाषा में वह निर्देश शामिल है जिसके जरिये कोशिका जीन को नियंत्रित करती है। ये दोनों भाषा एक-दूसरे में समाहित हैं। वैज्ञानिकों ने प्रोटीन के निर्माण से संबंधित डीएनए के आनुवांशिक कोड को 1960 में ही सुलझा लिया था। लेकिन जीन नियंत्रण संबंधी उसकी दूसरी गुप्त भाषा अब तक अबूझ ही थी। शोधकर्ता डॉ. जॉन स्टेमैटोयानोपोलस के अनुसार, ‘आनुवांशिक कोड लिखने के लिए जीनोम 64 अक्षरों वाली वर्ण माला का प्रयोग करते हैं। इन्हें कोडोन कहते हैं। हमने इनमें से कुछ कोडोन को खोजा है और इन्हें डुयोंस नाम दिया है। ये डुयोंस ही जीन नियंत्रण की गुत्थी को सुलझाते हैं।’ उन्होंने बताया कि डुयोंस की खोज के कारण अब वैज्ञानिकों और चिकित्सकों को किसी मरीज के जीनोम के विश्लेषण में आसानी होगी और इलाज के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी परिवर्तन होगा।