आधारभूत ब्रह्माण्ड

आधारभूत ब्रह्माण्ड, आखिर है क्या ??


कुछ ही शब्दों अथवा लेखों में यह बता पाना मुश्किल होगा कि आखिर आधारभूत ब्रह्माण्ड क्या है ?? इस मंच पर किया गया समस्त लेखन का कार्य, आधारभूत ब्रह्माण्ड को ही विश्लेषित करता हैं। आधारभूत ब्रह्माण्ड में सैद्धांतिक प्रकरण, व्यावहारिक प्रकरण, प्रायोगिक प्रकरण और असैद्धांतिक प्रकरण का समावेश रहता है। क्योंकि यह ब्रह्माण्ड का आधार है।
आधारभूत ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड का गणितीय भौतिक स्वरुप है। जिसमें आयामिक द्रव्य की रचनाएँ हुईं। इन द्रव्य की इकाइयों द्वारा ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। आधारभूत ब्रह्माण्ड के जितने हिस्से में भौतिकता के गुण देखने को मिलते हैं। उसे ब्रह्माण्ड कह दिया जाता है। बांकी हिस्से के कारण ही ब्रह्माण्ड में भौतिकता के गुण पाए जाते हैं। जिसे एक आयामिक द्रव्य या ब्रह्माण्ड का मूल/मूलभूत कह सकते हैं। यह आधारभूत ब्रह्माण्ड का अवयव और एक-समान गुण दर्शाने वाला पदार्थ है। मूलभूत पदार्थ किन्ही भी दो हिस्सों के मध्य की भिन्नता को दर्शाता है।

विश्लेषण के प्रमुख बिंदु
अस्तित्व के आधार पर :
1. भौतिक स्वरुप : आधारभूत ब्रह्माण्ड की संरचना का ढांचा ब्रह्माण्ड का स्वरुप कहलाता है। ब्रह्माण्ड के इस भौतिक स्वरुप को गणितीय भौतिक संरचना के रूप में ही जाना जा सकता है। यही विशिष्ट संरचना ब्रह्माण्ड की प्रकृति को निर्धारित करती है। इस अपरिवर्तित संरचना में सतत परिवर्तन होते हैं। यही परिवर्तन प्रकृति निर्माण के कारण बनते हैं।
2. भौतिक रूप (भौतिकता) : ब्रह्माण्ड में सतत् परिवर्तन (विस्तार) के कारण ही ब्रह्माण्ड में भौतिकता के गुण देखने को मिलते हैं। फलस्वरूप हम इसका परिक्षण और अध्ययन कर पाते हैं। इसलिए भौतिकता के अधिकतम मान को भौतिक रूप या ब्रह्माण्ड कहते हैं। इसमें शामिल होने के लिए ऐसा कुछ भी शेष नहीं रह जाता है, जो भौतिकता के गुणों को दर्शाता हो।
3. भौतिकता के रूप : भौतिकता अथवा ब्रह्माण्ड के भौतिक रूप का परिक्षण कर पाना असंभव है। क्योंकि परिक्षण के लिए जरुरी घटकों का भौतिकता के समान किन्तु भौतिकता से पृथ्क उपस्थिति के रूप में गुण दर्शाना संभव नहीं है। “भौतिकता के रूपों” के क्षेत्र की व्यापकता सदैव भौतिक स्वरुप अथवा भौतिकता से कम ही आंकी जाती है। फिर भी भौतिकता के रूपों का परिक्षण करके, सैद्धांतिक रूप में भौतिकता को जाना जा सकता है। वर्तमान में भौतिकता के पांच ज्ञात रूप हैं। जिनमें अवयव, कण, पिंड, निकाय और निर्देशित तंत्र प्रमुख हैं। भौतिकता के किसी भी रूप की समानता, भौतिक स्वरुप अथवा भौतिकता के साथ नहीं की जा सकती। क्योंकि भौतिक स्वरुप अथवा भौतिक रुप, भौतिकता के रूपों का संयोजन है।

अवस्था के आधार पर :
1. प्रकृति : यह एक सैद्धांतिक दृष्टी है। जिसके द्वारा प्रत्येक निर्देशित तंत्र की निर्धारित ऊर्जा, शक्ति, स्थिति और उद्देश को इकाई समय के लिए जाना जाता है। प्रकृति, ब्रह्माण्ड के स्वरुप द्वारा निर्धारित होती है। प्रकृति, उन सभी संभावनाओं को एक साथ लेकर चलती है। जो इकाई समय के लिए सैद्धांतिक रूप से भौतिक स्वरुप का प्रतिनिधित्व कर सकती हों।
2. प्राकृतिक : निर्धारित प्रकृति की वजह से भौतिकता को जिन गुणों के लिए जाना जाता है। वे व्यावहारिक होते हैं। जिनका परिक्षण कर पाना हमारे लिए संभव होता है। इन्ही गुणों के द्वारा ब्रह्माण्ड की बनावट को समझा जाता है। जिसमें अवयव, कण, भौतिक राशियाँ और प्राकृतिक नियम प्रमुख हैं। ब्रह्माण्ड परिवर्तन का क्रम प्राकृतिक बिंदु का अहम् हिस्सा है।
3. अप्राकृतिक : जब कभी अवस्था परिवर्तन के आधार पर भौतिक राशियों की माप की जाती है। तो यह प्रणाली अप्राकृतिक कहलाती है। यह बिंदु ब्रह्माण्ड के गुणात्मक विकास को दर्शाता है। यह विज्ञान की सबसे निम्न स्तर की स्थिति होती है। क्योंकि हमें यहाँ तय करना होता है कि परिक्षण के लिए किसे आधार माना जाए। हमारे द्वारा आधार तय करना, इस बिंदु के निम्न स्तर होने के प्रमाण हैं। यह बिंदु लोगों की व्यक्तिगत अवधारणाओं से जुड़ा हुआ होता है। जिसके अनुसार सापेक्षीय गुणात्मक विकास संभव होता है। यह एक वैकल्पिक प्रणाली है। इस स्थिति में जाकर समस्या के भौतिकी अर्थ को जाना जाता है।

पुस्तक के अंश :
1. सैद्धांतिक प्रकरण
2. व्यावहारिक प्रकरण                                                                                                                                                            पुस्तक लेखन का कार्य निरंतर अग्रसर है।

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