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विज्ञान में दर्शन का महत्व


जिसने दर्शन को समझा ही नहीं वो विज्ञान को कैसे जान सकता है ! इसके बाबजूद यदि वो ऐसा सोचता है कि वह विज्ञान को समझता है। तो उसका ऐसा सोचना गलत है। दरअसल वह विज्ञान को समझता नहीं है वह केवल वैज्ञानिक तथ्यों और वैज्ञानिक जानकारियों से भलीभांति परिचित है। यहाँ पर वास्तविकता इससे बढ़कर और कुछ नहीं है।

दर्शन यह तय करने में सहय़ोग प्रदान करता है कि क्या-क्या वास्तविक या विज्ञान हो सकता है। यह प्रक्रिया पूर्णतः सम्भावना पर टिकी होती है। बिलकुल दर्शन द्वारा तय हो जाने के बाद भी यह जरुरी नहीं है कि आगें चलकर कोई सिद्धांत या नियम प्रमाणित होकर विज्ञान कहलाए। परन्तु इतना जरुर तय है कि बिना दर्शन के तय किये गए नियम या सिद्धांत कभी भी प्रमाणित नहीं हो सकते। क्योंकि ब्रह्माण्ड में असंगत परिस्थितियों का अस्तित्व सम्भव नहीं है। और वैंसे भी दर्शन यही तो करता है असंगत और संगत परिस्थितियों में भेद उत्पन्न करता है। दर्शन, विज्ञान का पैर है। इसके बिना विज्ञान एक कदम भी नहीं चल सकता।

Darshan

विज्ञान में दर्शन का महत्व

  1. कूटकरण सिद्धांत के अनुसार किसी भी नियम या सिद्धांत को सहमति और अवलोकन के आधार पर सिद्ध नहीं किया जा सकता। परन्तु अवलोकन के आधार पर बनी असहमति के द्वारा अमान्य घोषित जरुर किया जा सकता है।
  2. हम किसी भी विषय के अध्ययन की शुरुआत मान्य तथ्यों (माना) से करते हैं। और आगें चलकर सभी सम्भावित परिस्थितियों की व्याख्या करते हैं। इस तरह मान्य तथ्यों के गलत हो जाने पर भी एकत्रित किये गए आंकड़े, की गई भविष्यवाणियाँ अथवा निर्मित तथ्य गलत नहीं कहलाते। क्योंकि ये सभी संगत परिस्थितियों की देन होते हैं।
  3. दर्शन द्वारा सभी संभावनाओं और उसकी संगत परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है।
  4. दर्शन किसी भी सम्भावित सिद्धांत या नियम को गलत सिद्ध नहीं करता। बल्कि शर्तों की व्यापकता के आधार पर सम्भावित सिद्धांत या नियम की सत्यता की संभावना को और अधिक बढ़ा देता है।
  5. विज्ञान किसी एक प्रक्रिया का नाम नहीं है। जहाँ एक अवधारणा को प्रमाण की आवश्यकता होती है। तो वहीं एक प्रयोग को सिद्धांत की आवश्यकता होती है। ताकि यह जांचा जा सके कि कहीं प्रायोगिक त्रुटि न हुई हो।
  6. विज्ञान किसी भी ऐसी प्रक्रिया, नियम, अवधारणा, सिद्धांत अथवा परिभाषा को मान्यता नहीं देता है। जिस पर मान्यता देने के बाद दो बारा प्रश्न न उठाए जा सकें। क्योंकि ऐसा करने से विज्ञान बिना पैरों का हो जाता है और उसका विकास रुक जाता है। इसके लिए विज्ञान, दर्शन का सहारा लेता है और संगत परिस्थितियों का विश्लेषण करता है।

महा-मंदाकिनी “फ़ीनिक्स”


अब तक की सबसे विशाल मंदाकिनी “फ़ीनिक्स” को खोज लिया गया है। यह हमारी पृथ्वी से 5.7 अरब प्रकाश वर्ष की अनुमानित दूर पर स्थित है। इस मंदाकिनी का नाम “फ़ीनिक्स” न केवल इसकी स्थिरता (स्थिति) को देखकर रखा गया है। बल्कि यह मरकर पुनः जीवित होने वाले पौराणिक पक्षी के समान, गुणों को दर्शाती है। इस मंदाकिनी में प्रतिवर्ष 740 (अनुमानित) तारों का जन्म होता है। “फ़ीनिक्स” मंदाकिनी लगभग एक दिन में दो तारों को उत्पन्न करती है। जबकि हमारी आकाशगंगा एक वर्ष में औसतन 1 से 2 तारों को ही जन्म देती है। ऐसा मालूम होता है कि “फ़ीनिक्स” मंदाकिनी कभी भी नष्ट नहीं होगी ! “फ़ीनिक्स” मंदाकिनी द्वारा तारों को जन्म देने की यह अभूतपूर्व दर अन्य मंदाकिनियों की तुलना में 5 गुना से अधिक है। और यह मंदाकिनी फ़ीनिक्स नक्षत्र में स्थित है। यह “फ़ीनिक्स” मंदाकिनी के नामकरण का एक कारण है। 740 तारों को प्रतिवर्ष जन्म देने वाली मंदाकिनी को मंदाकिनियों की माँ भी कहा गया है।
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अमेरिका के राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित खगोलविदों द्वारा दक्षिण ध्रुव में स्थित टेलीस्कोप का उपयोग करके “फ़ीनिक्स” मंदाकिनी को 2010 में ही खोज निकला गया। परन्तु इसकी विस्तृत जानकारी के साथ औपचारिक घोषणा 15 अगस्त 2012 को की गई। शोधकर्ताओं के अनुसार इसके केंद्र में विशालकाय तारों का जन्म होता है। शोधकर्ताओं ने जब फ़ीनिक्स मंदाकिनी से आने वाली क्ष-किरणों (X-ray), दृश्य प्रकाश किरणों, पराबैगनी प्रकाश किरणों और अवरक्त प्रकाश किरणों का बीते वर्षों में अनुसरण करके मापन किया। तब जाकर फ़ीनिक्स मंदाकिनी में जन्म लेने वाले तारों की दर ज्ञात हो पाई। और फ़ीनिक्स मंदाकिनी के गठन का पता चल पाया। हमारी आकाशगंगा (200 अरब तारे) की तुलना में “फ़ीनिक्स” मंदाकिनी में 3 खरब तारे हैं। और वहीं “फ़ीनिक्स” मंदाकिनी के केंद्र का द्रव्यमान हमारी आकाशगंगा के केंद्र (4 लाख सौर द्रव्यमान) की तुलना में अनुमानित 10 अरब सौर द्रव्यमान है। यह स्वाभाविक रूप से महा- मंदाकिनी फ़ीनिक्स है। जिसकी जानकारी नासा के चन्द्र दूरदर्शी द्वारा प्राप्त हुई है।
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स्रोत : नासा
Phoenix Galaxy

विषय संबंधी प्रमुख परिभाषित बिंदु


भौतिकी, इतनी सरल और सहज है, जैसे कि बंद कमरे की खिड़की से मैं बाहर के वातावरण को देख तो सकता हूँ। परन्तु वहाँ तक जाने के लिए मुझे दरवाजे का ही रास्ता चुनना पड़ेगा।

  • प्राकृतिक नियम भौतिकता के रूपों का आपसी व्यवहार है। और वहीं व्यावहारिक नियम एक निश्चित सीमा तक व्यवस्था कायम करने की युक्ति है।
  • वास्तविकता यह नही है कि आप उसे देख नही सकते। वास्तविकता यह है, जिसे आप देख पा रहे हैं उसके निर्माण में कौन-कौन से अवयव और घटक कार्यरत हैं।
  • विज्ञान, वह युक्ति है जो प्रत्येक अस्तित्व को प्रमाणिकता प्रदान करती है। जिसका अस्तित्व नहीं होता, विज्ञान के लिए उसको प्रमाणित करना असंभव है।
  • ब्रह्माण्ड की विशिष्ट संरचना का रचित, निर्मित, उत्पन्न या पैदा होना। ब्रह्माण्ड की गणितीय अवधारणा को जन्म देना है। क्योंकि यह संरचना समझने योग्य है।
  • हम उन सभी चीजों को देख सकते हैं। जिन्हें देखा जा सकता है। चाहे उनका आकार अतिसूक्ष्म ही क्यों ना हो। लेकिन उन रचनाओं को नहीं देखा जा सकता। जिसके कारण हम दृश्य जगत को देख पाते हैं। इसे ही अदृश्य जगत कहा जाता है।

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  • विज्ञान के सामने समस्या यह है कि असंगत परिस्थितियों का अस्तित्व संभव नही है।
  • गणना और मापन की प्रक्रिया में अनंत का उपयोग क्रमशः अधिकतम और सर्वाधिक मान को दर्शाने के लिए किया जा सकता है। परन्तु दोनों मान के लिए अनंत का भौतिकीय अर्थ भिन्न-भिन्न होता है।
  • ब्रह्माण्ड की भौतिकता के अस्तित्व के लिए स्वाभाविक और स्वतः दोनों क्रियाएँ जिम्मेदार हैं। इनका आपसी गहरा सम्बन्ध है। जो आधारभूत ब्रह्माण्ड पर आधारित हैं।
  • भौतिकता के रूपों के अस्तित्व के लिए जरुरी है कि वे सभी क्रियाओं में भागीदार हों। इस तरह ब्रहमांड के सभी मूलभूत अवयव जो किसी अन्य भौतिकता के रूपों से निर्मित नहीं हैं, ब्रहमांड के अन्य सभी अवयवों से संबंध बना पाते हैं।
  • ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को लेकर भिन्न-भिन्न मान्यताएँ हैं। इन सभी मान्यताओं में भिन्नता का कारण ब्रह्माण्ड की सीमा है। ब्रह्माण्ड की सीमा लोगों की अवधारणाओं को पृथक करती है। सीमा अर्थात किसी अन्य ब्रह्माण्ड की भी परिकल्पना करना।
  • भौतिकता के अधिकतम मान को भौतिक रूप या ब्रह्माण्ड कहते हैं। इसमें शामिल होने के लिए ऐसा कुछ भी शेष नही रह जाता है। जो भौतिकता के गुणों को दर्शाता हो।
  • भौतिक विज्ञान का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत “कोणीय संवेग की अविनाशिता” है। जिसके अनुसार घूमती हुई कोई भी वस्तु, यदि सिकुड़े तो उसकी घूमने की गति बढ़ जाती है।
  • गतिमान पदार्थों की गतिज ऊर्जा उनके भारों के अनुपात में बढ़ती है, जबकि उनकी परस्पर स्थितिज ऊर्जा (गुरुत्वाकर्षण की ऊर्जा) उनके भारों के वर्ग के अनुपात में बढ़ती है।