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हस्तक्षेप : ईश्वर के अस्तित्व का आधार


यह लेख विज्ञान से पूर्णतः सम्बंधित नही है। किन्तु हमारे द्वारा “महा-एकीकृत वर्गीकरण” के विश्लेषण के रूप में आठ बिन्दुओं के एकीकरण होने के दावे को बतलाया जाना है। जिसमें से आठवां एकीकरण “अवधारणाओं का एकीकरण” है। जिसके अनुसार सभी अवधारणाएँ चार बिन्दुओं में से एक बिंदु पर आकर केन्द्रित हो जाती हैं। जिसमें से पहला बिंदु “ब्रह्माण्ड का रचित” होना है। दूसरा बिंदु “ब्रह्माण्ड का निर्मित” होना है। तीसरा बिंदु “ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति” है। और चौथा बिंदु “ब्रह्माण्ड का पैदा” होना है। इसलिए इस विषय पर चर्चा किया जाना जरुरी था। चर्चा को वैज्ञानिक तरीके से आंगे बढ़ाने का प्रयास है। और तब प्रश्न उठता है कि क्या ब्रह्माण्ड की रचना ईश्वर ने ही की है ??
 
कुछ लोगों का मानना है कि हाँ, ब्रह्माण्ड की रचना ईश्वर ने ही की है। परन्तु कुछ लोगों का मानना है कि नहीं, ब्रह्माण्ड की रचना ईश्वर ने नही की। हमारे और आपके मानने से ईश्वर, ब्रह्माण्ड की रचना नहीं कर देता। तो फिर हम यह कैसे जाने कि ब्रह्माण्ड की रचना किसने की है ? पहले तो हमें यह जानना होगा कि ईश्वर है भी या नहीं ? दूसरी बात ईश्वर (यानि कि वह किससे बना है) कौन है ? और तीसरा और अंतिम प्रश्न ईश्वर क्या करता है या कर सकता है ? आप इस बात को आसानी से समझ सकते हैं कि अंतिम दोनों प्रश्न पहले प्रश्न पर आधारित हैं। यदि ईश्वर का अस्तित्व हुआ तो…
 
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पहला प्रश्न है कि ईश्वर का अस्तित्व है भी या नहीं। तो हम आपको यह बतलाना चाहते हैं कि ईश्वर के अस्तित्व को हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है। आप किसी भी तरह से सोच लें, किसी भी व्यक्ति का उदाहरण लेकर उसके द्वारा ईश्वर को परिभाषित करने के आधार को देख लेवें। आप यह स्पष्ट रूप से समझ पाएंगे कि ईश्वर को हस्तक्षेप के आधार पर ही तौला जाता है। यानि कि उसके पास अपार शक्ति है या फिर वही शक्ति है। जैसा भी हो पर यह तय है कि वह सब कुछ कर सकता है या सिर्फ परिवर्तन कर सकता है। यदि वह अस्तित्व रखता है तो…  हमें नहीं लगता कि ईश्वर को सिर्फ परिभाषित करने से हम यह जान पाएंगे कि ईश्वर अस्तित्व रखता है या नहीं।
 
दूसरा प्रश्न यह कहता है कि ईश्वर कौन है ? आइये पहले हम ब्रह्माण्ड की रचना से जुड़े पहलुओं पर नज़र डालते हैं। ब्रह्माण्ड बनाने का अब तक का एक मात्र तरीका ब्लैक होल है। इस प्रक्रिया से ब्रह्माण्ड को तीन स्तर तक के लिए डिजाईन किया जा सकता है। पहला, भौतिकी के नियमों में बिना छेड़छाड़ किये ब्लैक होल द्वारा ब्रह्माण्ड का निर्माण करना। दूसरा, शिशु ब्रह्माण्ड की खासियतों को कोई नई दिशा देकर मनचाहे ब्रह्माण्ड को पाना। इसके लिए मूल ब्रह्माण्ड (शिशु रूप) में गुरुत्वाकर्षण बल का मान अपेक्षाकृत अधिक कर दिया जाता है। और तीसरा, पूर्व से ही खासियतों को निर्धारित कर निर्मित ब्रह्माण्ड में निर्देशित खासियतों को पाना। यानि कि भौतिकी के नियमों के साथ खेलकर दोषहीन ब्रह्माण्ड की रचना करना। हालाँकि इन तीनों स्तरों पर ब्रह्माण्ड के अस्तित्व में आने के बाद उसमें छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। अस्तित्व में आने के बाद ये ब्रह्माण्ड स्वयं ही विकास करेंगे। ठीक वैंसे ही जैसे मानव जाति अभी तक करते आई है। हमें यह समझना होगा कि तीनों स्तरों की प्रक्रिया और उसकी प्रमुख शर्त ब्रह्माण्ड के अस्तित्व में आने के बाद उसमें छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है, ब्रह्माण्ड की रचना पर आधारित अवधारणा नहीं है।
 
तीसरा और अंतिम प्रश्न यह कहता है कि ईश्वर क्या करता है या कर सकता है ? अभी तक के दोनों प्रश्नों की चर्चाओं में कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पाया है। परन्तु ईश्वर से सम्बंधित कुछ शर्तों को समझने में आसानी हुई है। जैसे कि यदि ईश्वर का अस्तित्व है तो वह भौतिकी का हिस्सा है। और यदि ईश्वर भौतिकी का हिस्सा नहीं है तो उसका अस्तित्व भी नही है। क्योंकि तब हम उसको प्रमाणित नहीं कर सकते। यानि कि भौतिकी के नियम ईश्वर के लिए भी हैं। और वह उन नियमों का पालन भी करता है। हम नास्तिक, ईश्वर को अपेक्षाकृत अधिक पूजनीय मानते हैं यदि ईश्वर अस्तित्व रखता है तो…  क्योंकि वह ब्रह्माण्ड में हस्तक्षेप नहीं करता। भले ही वह कर सकता हो… और यदि वह ब्रह्माण्ड में हस्तक्षेप करता है तो वह अवश्य ही कोई उन्नत प्रजाति होगी न की एक ईश्वर।
 
नोट : ब्रह्माण्ड को निर्मित करने के स्तर की जानकारी “द ग्रैंड डिजाईन” नामक पुस्तक के प्रकाशन पर न्यूज़ पेपर में छपे लेख से प्राप्त हुई है।

पदार्थ या ऊर्जा !


सर अल्बर्ट आइंस्टीन के अनुसार ऊर्जा और द्रव्य को आपस में रूपांतरित किया जा सकता है। जिसको आपने द्रव्य-ऊर्जा तुल्यता (E = mc2) के सूत्र के रूप में दर्शाया।

वैज्ञानिक इस सम्बन्ध को आज भी ऊर्जा और द्रव्य के रूप में देखते हैं। आशय यह है कि वैज्ञानिकों के अनुसार निर्देशित ऊर्जा को द्रव्य में अथवा द्रव्य को ऊर्जा में बदला जा सकता है।

E=MC2

हमारे अनुसार ऊर्जा और द्रव्य एक विशिष्ट पदार्थ के रूप हैं। जिन्हें हम व्यव्हार के रूप में देखते आए हैं। चूँकि वैज्ञानिकों ने अभी तक उस पदार्थ के गुणों की खोज नहीं की है। इसलिए वे सभी ऊर्जा और द्रव्य को एक विशिष्ट पदार्थ के रूप में नहीं देख सकते। परन्तु हमने महा-एकीकरण सिद्धांत के द्वारा उस पदार्थ के गुणों को पाया है। जो सिद्धांत के रूप में परिभाषित है। यह वह एक मात्र कारक है। जिसे प्रत्येक घटना का एक और केवल एक मात्र कारण मान सकते हैं।