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मासिक पुरालेख: जुलाई 2013

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अनंत को परिभाषित करें !!


अनंत का उपयोग सदियों से होता आया है। फिर भी हमारे द्वारा उसको अपरिभाषित कह देना कितना उचित है। आइये.. विज्ञान के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अनंत को परिभाषित करतें हैं।

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  1. भौतिकी में : इसमें शामिल होने के लिए ऐसा कुछ भी शेष नहीं रह जाता। जिसका अस्तित्व हो।
  2. खगोल विज्ञान में : गत्यावस्था की असीम संभावनाएँ
  3. गुरुत्वाकर्षण द्वारा : जहाँ से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल की सीमा समाप्त हो जाती है।
  4. प्रकाशिकी में : जहाँ से प्रकाश किरणें समान्तर आती हुई प्रतीत होती हैं।
  5. गणित में : मुख्यतः भागफल की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त अपरिभाषित संख्या..
  6. रेखा गणित में : किसी बिंदु से गुजर सकने वाली रेखाओं की संख्या अथवा किसी रेखा को निर्मित करने में उपयुक्त बिन्दुओं की संख्या
  7. ज्यामिति में : किन्ही दो समान्तर रेखाओं का कटान बिंदु
  8. मापन में : सर्वाधिक मान के लिए
  9. गणना में : अधिकतम मान के लिए

प्रिज्म : एक अच्छा उदाहरण


माध्यमिक शालाओं की कक्षा में हम सभी ने प्रिज्म के बारे में पढ़ा है। और आज भी उसके बारे में बहुत कुछ जानते हैं। प्रिज्म के बारे में हम जो कुछ जानते हैं। वो यह है कि प्रिज्म पांच फलकों से निर्मित वह संरचना है, जिसमें दो फलक समान्तर और तीन फलक त्रिभुजाकार आकृति में गठित होते हैं। अब बात करते हैं प्रिज्म के व्यवहार के बारे में.. प्रकाश की प्रकृति इस रूप में जानी जाती है कि वह सरल रेखा में गति करता है। प्रकाश संबंधी घटनाओं में प्रकाश का परावर्तन, अपवर्तन, वर्ण-विक्षेपण, विवर्तन, व्यतिकरण, ध्रुवण और प्रकाश का विद्युत प्रभाव प्रमुख है।

Prizm

प्रिज्म में प्रकाश की प्रमुख घटना अपवर्तन और वर्ण-विक्षेपण घटित होती है। वर्ण-विक्षेपण, प्रकाश के अपवर्तन द्वारा निर्मित घटना है। जब श्वेत प्रकाश अपने अवयवी रंगों में विभक्त हो जाता है। तो इस घटना को प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कहते हैं। यह घटना प्रिज्म की विशिष्ट संरचना के कारण घटित होती है। जब श्वेत प्रकाश की किरण उन तीन फलकों में से एक फलक पर आपतित होती है। तब अपवर्तन की घटना के अनुसार वह किरण अभिलम्ब की ओर झुक जाती है। और वहीं एक निश्चित दूरी तय करने के उपरांत जब वह किरण उन्ही तीनों फलक में से दूसरी फलक (चूँकि उन तीन में से एक फलक पर प्रकाश किरण आपतित हो चुकी है) पर पुनः आपतित (अपवर्तन) होती है। तब वह अपने अवयवी रंगों में विभक्त दिखलाई देती है। इस तरह प्रकाश किरण क्रमशः बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल रंगों में विभक्त होकर गमन कर जाती है। अपने अवयवी रंगों में विभक्त होने की क्रिया दूसरी बार होने वाले अपवर्तन के फलस्वरूप नहीं होती है। अपितु पहली बार होने वाले अपवर्तन के फलस्वरूप ही रंगों का विक्षेपण हो जाता है। चूँकि जिस फलक पर प्रकाश का आगमन होता है। और जिस फलक से प्रकाश का गमन होता है। वे फलक समान्तर नहीं होती हैं। फलस्वरूप अवयवी रंग पुनः एकत्रित नहीं हो पाते। जिसे हम वर्ण-विक्षेपण कहते हैं। वर्ण-विक्षेपण, अपवर्तन की क्रिया में आने वाली एक संरचनीय त्रुटी है। प्रिज्म की दो समान्तर फलक में से किसी एक फलक पर यदि श्वेत प्रकाश की किरण आपतित होती भी है तो प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण नहीं होगा। अपितु प्रकाश की गति में माध्यम परिवर्तन से होने वाले नगण्य परिवर्तन को देखा जा सकता है। परन्तु वर्ण-विक्षेपण को नहीं..
निष्कर्ष : रंगों की विचलन-दूरी समान नहीं होने के कारण प्रिज्म के अन्दर दुबारा अवयवी रंग पुनः एकत्रित नहीं हो पाते हैं। फलस्वरूप वर्ण-विक्षेपण की घटना घटित होती है। यह भिन्नता संरचना पर आधारित होती है। आपने देखा कि प्रकाश की प्रकृति प्रिज्म के अन्दर भी सरल रेखा में गति करने की ही है। सिर्फ प्रकाश के व्यव्हार को नया रूप मिला है। व्यवहार में जो कुछ बदलाव आते हैं। वह संरचना पर ही आधारित होते हैं। और जैसा हम सभी ने देखा कि विचलन-दूरी अर्थात संरचना का आकर भी प्रकृति निर्धारण का कारण हो सकता है।

शब्दों को परिभाषित करती एक कहानी


यह घटना किसी व्यक्ति विशेष की नहीं है। अपितु १० में से ८ उन हर उत्सुक विद्यार्थियों की है। जो हमेशा हर चर्चित विषय पर यह सोचते हैं कि क्या सामने वाला व्यक्ति सही कह रहा है ! सामने वाले व्यक्ति की सोचने की प्रणाली कैसी है ! वह शब्दों को किस तरह से स्वीकारता है ! क्या वाकई सामने वाला व्यक्ति विषय को जानता है ! उससे वह कभी रूबरू हुआ भी है या नहीं ?? बगैरा-बगैरा…

Fractal (31)

हम नहीं जानते कि यह घटना हमारे साथ घटी भी है या नहीं.. एक बार एक विद्यार्थी को एक शब्द मिलता है। ठीक उसी तरह से जैसे कि किसी २ वर्ष के शिशु को एक सिक्का मिलता है। विद्यार्थी उस शब्द के बारे में और जानना चाहता है। उसने इस शब्द के बारे में लोगों से पूंछना शुरू कर दिया। तरह-तरह के लोगों से उसने चर्चाएँ की। जब भी कोई व्यक्ति उसके संपर्क में आता, वह इसी शब्द से उसकी भेंट करा देता। ठीक उसी तरह से जैसे एक नन्हा बालक के पास खिलौना आने पर वह सभी को यह बतलाना चाहता है कि उसके पास एक खिलौना है। भिन्न-भिन्न अर्थों को दर्शाने वाला यह शब्द लोगों के द्वारा भिन्न-भिन्न अर्थों को दर्शा रहा था। परन्तु वह विद्यार्थी तब भी उस शब्द से उतना ही अपरिचित था। जितना की शब्द के मिलने के बाद से था। असंतोष जनक उत्तर की प्राप्ति विद्यार्थी को उस प्रश्न से दूर करने लगी। कुछ समय बाद तक वह प्रश्न उसे याद रहा। परन्तु वह उसे और समय तक याद नहीं रख सका। और अंततः उस प्रश्न को भूल गया।

एक समय आया जब वह किसी नए विषय पर अपने शोध पत्र को पढ़ रहा था। शोध को पढ़ते- पढ़ते वह अचानक रुक जाता है। शोध पाठन को आगे नहीं बढाया जा सकता था। वह शब्दों की कमी को महसूस कर रहा था। वह जिस शोध को पढ़ रहा था। उसका पूरा भौतिकीय अर्थ वह जानता था। उसका चित्रण अभी भी उसके दिमाग में था। फिर भी वह शोध पत्र को आगे नहीं पढ़ सका। क्योंकि वह अभी भी उस शब्द के भौतिकीय अर्थ को नहीं जान पाया था। जिसका असफल प्रयास वह पहले ही कर चूका था। क्षण भर बाद वह उसी शब्द का प्रयोग कर आंगे बढ़ जाता है। इस तरह से वह उस शब्द के उभयनिष्ट अर्थ को जान जाता है।